भारत के संतों की
श्रंखला में आज हम आपके अघोरेश्वर बाबा कीनाराम की जीवनी लेकर आए हैं। जिन्होंने
छठी शताब्दी में भारत में सुप्त अघोर परंपरा को पुनर्जीवित किया। बाबा कीनाराम ने
कृ कुंड बनारस में अघोर परंपरा के सर्वोच्च सिंहासन की स्थापना की।
भारत
भूमि सदैव से ही संत महात्माओं की तपस्थली रही है। इस दुनिया की समृद्ध भूमि पर,
कई अलौकिक पवित्र
लोगों ने अपने चरित्र, प्रशंसा
और चमत्कारों के साथ जनसामान्य को आल्हादित और आप्लावित किया है।
इसके साथ ही उन्होंने भारत के गहन उत्कर्ष और संपन्नता को पूरी दुनिया
में प्रसारित भी किया है। इस व्यवस्था में अघोर प्रथा को बहाल करने वाले बाबा
कीनाराम का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
बाबा कीनाराम अघोरपंथ के एक असाधारण सिद्ध संत थे। उनकी अलौकिक
घटनाओं के कई विवरण समग्र आबादी में आम हैं। उनकी उपलब्धि और क्षमता के बारे में
बताने के लिए यह प्रसंग काफी है –
बनारस की वह शाम कुछ
खास थी सुहानी शाम में सूरज गंगा धीरे धीरे उतर रहा था ऐसा लग रहा था मानो सूरज भी
गंगा में डुबकी लगाना चाहता था हम बनारस के घाटों पर टहल रहे थे।
हमारी निगाहें किसी
को ढूंढ रही थी अंधेरे के साथ-साथ हम अस्सी घाट से राजघाट की तरफ बढ़ रहे थे शहर
की रोशनी गंगा में तैर रही थी थोड़ा आगे बढ़ने पर हमें गंगा के किनारे टिमटिमाते
दिए देखें।
Baba Kinaram Ji Ka Janm Ki Kahani
कीनाराम बाबा का जन्म सन 1601 में उत्तर प्रदेश के चंदौली जनपद के रामगढ़ नामक ग्राम में एक कुलीन क्षत्रिय परिवार में हुआ था। बचपन से ही वे आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। खाली समय में वे अपने मित्रों के साथ रामधुन गाते थे।
Baba Kinaram Ki Sadi Ki Kahani
बारह वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह कर दिया गया और तीन वर्ष बाद गौना निश्चित हुआ। गौने की पूर्वसंध्या पर इन्होंने अपनी माँ से दूध-भात खाने के लिए मांगा। उस समय दूध भात खाना अशुभ माना जाता था।
जोकि मृतक संस्कार के बाद खाया जाता था। माँ के मना करने के बाद भी उन्होंने हठ करके दूध भात खाया। अगले दिन उनकी पत्नी की मृत्यु का समाचार प्राप्त हुआ। समाचार से पता चला कि उनकी पत्नी की मृत्यु एक दिन पूर्व सायंकाल में ही हो चुकी थी।
पूरा गांव आश्चर्यचकित था कि घर पर बैठे बैठे कीनाराम को पत्नी की मृत्यु की जानकारी कैसे हो गयी? कुछ समय बाद घरवाले फिर से विवाह के लिए दबाव डालने लगे। जिससे परेशान होकर बाबा कीनाराम ने घर छोड़ दिया।
Baba Kinaram ji Sanyas Jiwan
घर छोड़ने के बाद वे घूमते हुए गाजीपुर जिले के कारों ग्राम जोकि अब बलिया जिले में है, वहां पहुंचे। वहां रामानुजी परंपरा के संत शिवराम की बड़ी प्रसिद्धि थी। कीनाराम जी उनकी सेवा में जुट गए और उनसे दीक्षा देने की प्रार्थना की।
एक दिन शिवराम जी ने इन्हें पूजा सामग्री लेकर गंगातट पर चलने को कहा। कीनाराम जी सामग्री लेकर गंगातट से थोड़ी दूर बैठ गए। थोड़ी देर में गंगा का जल बढ़कर उनके पैरों तक पहुंच गया। यह चमत्कार देखकर शिवरामजी ने इनको दीक्षा दी दी।
Kinaram Baba Ne Beejaram Ji Ko Mukt Karaya
बाबा ने कुछ समय वहां रहकर के साधनाएं कीं। पत्नी की मृत्यु के बाद जब संत शिवराम ने पुनर्विवाह किया तो बाबा कीनाराम ने उन्हें छोड़ दिया। भ्रमण करते हुए बाबा नईडीह नामक गांव में पहुंचे। वहां एक बुढ़िया के लड़के को लगान न दे पाने के कारण जमींदार के आदमी पकड़ ले गए थे।
लाचार वृद्धा का दुख बाबा से देखा नहीं गया। वे उसके लड़के को छुड़ाने जमींदार के पास पहुंच गए। जमींदार ने कहा कि मेरा लगान दे दीजिए, लड़का ले जाइए। बाबा बोले, “जहां लड़का बैठा है, उसके नीचे खोदो। तुम्हें तुम्हारे लगान से कई गुना अधिक धन मिल जाएगा।
सचमुच वहां सोने की अशर्फियों का ढेर निकला। जमींदार बाबा के चरणों में नतमस्तक हो गया। लड़के को छोड़ दिया गया। बुढ़िया ने अपने लड़के को बाबा की सेवा में सौंप दिया। वही लड़का आगे चलकर बाबा बीजाराम के नाम से प्रसिद्ध हुआ और बाबा का उत्तराधिकारी बना।
भगवान दत्तात्रेय के दर्शन
वहां से आगे बढ़ते हुए बाबा गिरनार पर्वत पर पहुंचे। जो औघडपंथी संतों की पुण्य तपोभूमि मानी जाती है। यहीं साक्षात शिव के अवतार महागुरु दत्तात्रेय जी ने baba kinaram को दर्शन दिए। इससे पूर्व दत्तात्रेय जी ने गुरु गोरखनाथ को भी यहीं दर्शन दिए थे।
जूनागढ़ के नवाब का मानमर्दन- बाबा कीनाराम beejaram ji ki mukti
गिरनार पर्वत से लौटते हुए बाबा जूनागढ़ रियासत में पहुंचे। वहां का नवाब बहुत घमंडी था। उसने अपने राज्य में भिक्षा मांगने प्रतिबंधित कर रखा था। भिक्षुकों को वह जेल में डाल देता था। वहां पहुंचकर बाबा ने बीजाराम को भिक्षा मांगने भेजा।
लेकिन नवाब के आदेशानुसार सैनिकों ने उन्हें कालकोठरी में डाल दिया। बीजाराम के न लौटने पर बाबा कीनाराम स्वयं भिक्षा मांगने गए। उन्हें भी पकड़कर कालकोठरी में डाल दिया गया।
वहां पहले से ही बहुत से संत महात्मा और फकीर बंद थे। सबको चलाने के लिए एक चक्की दी जाती थी। बाबा को भी एक चक्की दी गयी। बाबा ने अपनी छड़ी चक्की पर मारी और चक्की अपने आप चलने लगी।
इसी तरह वहां लगी 981 चक्कियां बाबा ने एक साथ चला दीं। यह देखकर पहरेदारों ने नवाब को सूचना दी। यह देखकर नवाब ने बाबा को मुक्त कर उनसे क्षमा याचना की। बाबा ने उससे सभी संतों-फकीरों को छोड़ने को कहा।
साथ ही बाबा ने उससे वचन लिया कि आज के बाद प्रत्येक मांगने वाले को ढाई पाव आटा राज्य की ओर से दिया जाएगा।
क्रीं कुंड-अघोरी बाबा
जूनागढ़ से चलकर बाबा कीनाराम उत्तराखंड के जंगलों में पहुंचे। वहां विभिन्न स्थलों पर बाबा ने कई वर्षों तक साधनाएं कीं। तत्पश्चात वे वाराणसी के क्रीं कुंड में पहुंचे और यहां धूनी रमाई।
क्रीं कुंड को बहुत ही सिद्ध स्थल माना जाता है। एक बार बाबा कालूराम ने कहा था कि यहां सभी तीर्थों का वास है। क्रीं कुंड में ही बाबा कीनाराम ने अघोरपंथ की सर्वोच्च गद्दी स्थापित की। यहां बाबा की जलाई हुई धूनी आज भी प्रज्वलित है।
यहां स्थित कुंड में स्नान करने से सभी प्रकार के चर्म रोग दूर होते हैं, ऐसी मान्यता है। क्रींकुण्ड में स्नान करने और बाबा की समाधि के दर्शन करने के लिए लोगों का तांता लगा रहता है।
Kinaram Baba Ka Saral Swabhav
कीनाराम बाबा बहुत ही सरलस्वभाव के थे। दूसरों के दुख से वे बड़ी जल्दी द्रवित हो जाते थे। वे शीघ्र ही उसके दुखों को दूर करने के उपाय बता देते थे। शिव के समान आशुतोष और शिव के समान ही क्रोधी।
कीनाराम बाबा का कृतित्व
Kashi Naresh Ko Shrap
यही औघड़ों का स्वभाव है। प्रसन्न हो जायें तो सब कुछ दे दें। नाराज हो जाएं तो जो है वह भी छीन लें। लेकिन बाबा ने काशीनरेश के अलावा और किसी का अहित नहीं किया। अपने जीवनकाल में उन्होंने न जाने कितने रोगियों को रोगमुक्त किया। कितनों की समस्याएं दूर कीं। कई मृत लोगों के परिजनों के रुदन से द्रवित होकर उन्हें पुनर्जीवित किया।
Je Ke Na de Ram O K de Kinaram
एक जनश्रुति है कि एक बार एक निःसंतान महिला भक्तशिरोमणि तुलसीदासजी के पास पुत्र की याचना हेतु पहुंची। तुलसीदासजी ने बताया कि तुम्हारे भाग्य में संतानसुख नहीं है। अतः तुम्हे संतान नहीं हो सकती।
वह महिला बाबा कीनाराम baba keenaram के पास पहुंची। बाबा ने अपनी छड़ी पांच बार उसके माथे से छुआई। जिसके फलस्वरूप उसके पांच पुत्र हुए। तभी से यह कहावत प्रचिलित हो गयी कि “जो न कर सकें राम। वह करें कीनाराम।”
Aghori Ki Sadhana
अघोरपंथ वस्तुतः साधना की सबसे जटिल पद्धतियों में से एक है। साथ ही यह सबसे सरलतम भी है। इसमें साधक को केवल प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करना होता है। यह सरलतम इसलिए है कि इसमें साधक को जगत की प्रत्येक वस्तु को शिव रूप में स्वीकार करना होता है।
जटिलतम इसलिए कि प्रकृति से तादात्म्य एवं हर अच्छी बुरी चीज को शिव स्वरूप मानकर स्वीकार करना और अंगीकार करना बहुत ही कठिन है। संभवतः सभी पंथों में अघोरी ही है जो प्रकृति पर पूर्ण नियंत्रण रखता है।
इसीलिए अघोरी का कहा गया एक एक वाक्य अक्षरसः सत्य होता है। अघोरी के दिये गए शाप या आशीर्वाद को काटने का सामर्थ्य अघोरेश्वर भगवान शिव के अतिरिक्त अन्य किसी में नहीं।
पांचवी छठी शताब्दी के बाद सुप्तावस्था में चली गयी अघोर परंपरा को पुनर्जीवित और पुनर्स्थापित करने का श्रेय बाबा कीनाराम को जाता है। बाद के वर्षों में कुछ तथाकथित अघोरियों ने समाज में अपने कृत्यों से जनमानस में अघोर परम्परा एवं अघोरियों के लिए भय का वातावरण बनाया।
इस विषय पर विश्वनाथ प्रसाद अस्थाना जिन्होंने साठ साल तक अघोरपंथ को बारीकी से समझा और अघोरपंथ पर कई विश्वप्रसिद्ध पुस्तकें भी लिखीं। उनके विचार इस प्रकार हैं-
“अघोरी मदारियों की तरह तमाशा नहीं दिखाते। न ही वे चमत्कारों का दिखावा करते हैं। अघोरी तो संकल्पमात्र से विधि के विधान को बदल देता है। तथापि उनका एकमात्र उद्देश्य जनसामान्य की सेवा और दुखों को दूर करना होता है।”
वह पाखंड और चमत्कार से दूर रहता है। यह और बात है कि काल के प्रवाह में उसके द्वारा जनकल्याण के लिए सहज ही कुछ ऐसे कार्य हो जाते हैं जिन्हें आमजन चमत्कारों की संज्ञा देते हैं।”
बाबा कीनाराम की मृत्यु
170 वर्षों तक जनकल्याण के लिए अनेक लीलाएं करने के बाद बाबा कीनाराम ने सन 1770 में समाधि ले ली।