Sunday, 13 June 2021

Baba Kinaram | Baba Keenaram | Keenaram Baba Ki Kahani

 Biography of Kinaram Baba

अघोराचार्य बाबा किनाराम का जन्म भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में वाराणसी के निकट चंदौली जिले के रामगढ़ गांव में 1601 ई. में भाद्रपद में अघोर चतुर्दशी को हुआ था। ऐसा माना जाता है कि, जन्म के बाद वह अपने जन्म के तीन दिन बाद अघोरा की प्रमुख देवी हिंगलाज माता के आशीर्वाद से रोने लगे थे।

वाराणसी के विद्वानों के अनुसार बाबा कीनाराम एक महान संत और प्रागैतिहासिक अघोरा के संस्थापक पिता थे। बाबा कीनाराम को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। क्षत्रिय परिवार में अपने माता-पिता (श्री अकबर सिंह और मनसा देवी) के घर पैदा होने पर उस क्षेत्र के सभी लोग प्रसन्न हो गए। अपने जन्म के बाद, वह कम से कम तीन दिन तक न तो रोया और न ही अपनी माँ के स्तन को चूसा। उनके जन्म के चौथे दिन (तीन दिन बाद), तीन भिक्षु (भगवान सदाशिव के विश्वासी: ब्रह्मा, विष्णु और महेश) उनके पास आए और बच्चे को अपनी गोद में ले लिया। जैसे ही उन्होंने बच्चे के कान में कुछ फुसफुसाया, वह आश्चर्यजनक रूप से रोने लगा। उस दिन से, लोलार्क षष्ठी उत्सव हिंदू धर्म द्वारा उनके जन्म के पांचवें दिन महाराज श्री किनाराम बाबा के संस्कार के रूप में मनाया जाता है। बाबा किनाराम ने बलूचिस्तान के ल्यारी जिले (पाकिस्तान के रूप में जाना जाता है) में हिंगलाज माता (अघोरा की देवी) के आशीर्वाद से सामाजिक कल्याण और मानवता के लिए अपनी धार्मिक यात्रा शुरू की थी। वह अपने आध्यात्मिक शिक्षक बाबा कालूराम के शिष्य थे, जिन्होंने अघोर के बारे में उनके भीतर जागरूकता को प्रेरित किया था।

बाद में, बाबा किनाराम ने लोगों की सेवा करने और उन्हें प्रागैतिहासिक ज्ञान के साथ प्रबुद्ध करने के लिए खुद को भगवान शिव की नगरी वाराणसी में स्थापित किया था। उन्होंने अपने लेखन में अघोर के सिद्धांतों को रामगीता, विवेकसर, रामरासाल और उन्मुनिराम के नाम से जाना था। अघोर के सिद्धांतों पर सबसे वास्तविक थीसिस रखने वाले विवेक को कहा जाता है। पूरे धार्मिक भ्रमण के दौरान बाबा कीनाराम पहले कुछ दिनों के लिए गृहस्थ संत (बाबा शिव दास) के आवास पर रुके थे। उन्होंने बाबा शिव दास द्वारा उनकी गतिविधियों को बहुत करीब से देखा। बाबा शिव दास उनके अजीब गुणों के लिए उनसे बहुत प्रभावित थे। उसे संदेह था कि वह भगवान शिव का पुनर्जन्म है।

एक बार की बात है, बाबा शिव दास ने गंगा नदी में स्नान के दौरान अपना सारा सामान बाबा कीनाराम को सौंप दिया था, और खुद को झाड़ियों के पास छिपा लिया था। बाबा शिव दास ने देखा था कि जैसे-जैसे किनाराम नजदीक आता गया गंगा नदी की बेचैनी बढ़ती गई। उनके चरण स्पर्श करने मात्र से ही गंगा जल का स्तर बढ़ने लगा और तेजी से नीचे चला गया। बाबा किनाराम अघोर परंपरा (भगवान शिव परंपरा) के प्रमुख संत के रूप में लोकप्रिय थे। वह 170 साल तक जीवित रहे और बाबा कीनाराम स्थल की स्थापना की। उनकी मृत्यु के बाद, उनके शरीर को देवी हिंगलाज के साथ उनके अंतिम विश्राम स्थल में दफनाया गया था।

भक्तों और विद्वानों के अनुसार, इसे वर्तमान बाबा सिद्धार्थ गौतम राम (बाबा किनाराम स्थल के पीठाधीश्वर / महंत) के रूप में माना जाता है, जो बाबा कीनाराम का 11 वां अवतार है। बाबा कीनाराम ने वाराणसी शहर की एक प्राचीन अघोर सीट की स्थापना की है। यह भी माना जाता है कि, वाराणसी में गंगे नदी के तट पर, उन्होंने भगवान की अपनी साधना को जारी रखने के लिए एक अखंड धुनी (जिसे पवित्र अग्नि, निरंतर ज्वलनशील अग्नि के रूप में भी जाना जाता है) बनाया।

Kinaram Baba Ashram in Varanasi

बाबा कीनाराम 16वीं सदी के वाराणसी शहर के अघोर थे। उन्होंने भगवान दत्तात्रेय के दर्शन प्राप्त करने के बाद वाराणसी शहर (नाम, क्रिम कुंड स्थल) में बाबा किनाराम अघोर आश्रम की स्थापना की थी। अघोराचार्य महाराज किनाराम पूरे भारत में घूमे थे और लोगों की पीड़ा को महसूस किया था। उसके बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों के कष्टों को दूर करने में लगा दिया।

Kinaram Baba Aarti

लोलारक खस्ति पर्व के महान अवसर पर बाबा कीनाराम जी की आरती होती है। बाबा किनाराम की आरती में शामिल होने के लिए भक्त वाराणसी (भारत के कोने-कोने से) आते हैं।

Wednesday, 8 June 2016

BABA KINARAM RAMGARH CHANDAULI

गांजे मे गंगा बसी, चीलम में चार धाम,
कंकर मे शंकर बसे, और रामगढ़ में कीनाराम !!


Baba Kinaram ramgarh


भारत के संतों की श्रंखला में आज हम आपके अघोरेश्वर बाबा कीनाराम की जीवनी लेकर आए हैं। जिन्होंने छठी शताब्दी में भारत में सुप्त अघोर परंपरा को पुनर्जीवित किया। बाबा कीनाराम ने कृ कुंड बनारस में अघोर परंपरा के सर्वोच्च सिंहासन की स्थापना की।


भारत भूमि सदैव से ही संत महात्माओं की तपस्थली रही है। इस दुनिया की समृद्ध भूमि पर, कई अलौकिक पवित्र लोगों ने अपने चरित्र, प्रशंसा और चमत्कारों के साथ जनसामान्य को आल्हादित और आप्लावित किया है।


इसके साथ ही उन्होंने भारत के गहन उत्कर्ष और संपन्नता को पूरी दुनिया में प्रसारित भी किया है। इस व्यवस्था में अघोर प्रथा को बहाल करने वाले बाबा कीनाराम का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।


बाबा कीनाराम अघोरपंथ के एक असाधारण सिद्ध संत थे। उनकी अलौकिक घटनाओं के कई विवरण समग्र आबादी में आम हैं। उनकी उपलब्धि और क्षमता के बारे में बताने के लिए यह प्रसंग काफी है –
 
बनारस की वह शाम कुछ खास थी सुहानी शाम में सूरज गंगा धीरे धीरे उतर रहा था ऐसा लग रहा था मानो सूरज भी गंगा में डुबकी लगाना चाहता था हम बनारस के घाटों पर टहल रहे थे।


हमारी निगाहें किसी को ढूंढ रही थी अंधेरे के साथ-साथ हम अस्सी घाट से राजघाट की तरफ बढ़ रहे थे शहर की रोशनी गंगा में तैर रही थी थोड़ा आगे बढ़ने पर हमें गंगा के किनारे टिमटिमाते दिए देखें।


Baba kinaram ramgarh asharam
 

Baba Kinaram Ji Ka Janm Ki Kahani

कीनाराम बाबा का जन्म सन 1601 में उत्तर प्रदेश के चंदौली जनपद के रामगढ़ नामक ग्राम में एक कुलीन क्षत्रिय परिवार में हुआ था। बचपन से ही वे आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। खाली समय में वे अपने मित्रों के साथ रामधुन गाते थे।

Baba kinaram ramgarh asharam

Baba kinaram ramgarh asharam

Baba kinaram ramgarh asharam

Baba Kinaram ramgarh bal satsang

Baba Kinaram Ki Sadi Ki Kahani

Baba Kinaram ki sadi ki photo


बारह वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह कर दिया गया और तीन वर्ष बाद गौना निश्चित हुआ। गौने की पूर्वसंध्या पर इन्होंने अपनी माँ से दूध-भात खाने के लिए मांगा। उस समय दूध भात खाना अशुभ माना जाता था।


जोकि मृतक संस्कार के बाद खाया जाता था। माँ के मना करने के बाद भी उन्होंने हठ करके दूध भात खाया। अगले दिन उनकी पत्नी की मृत्यु का समाचार प्राप्त हुआ। समाचार से पता चला कि उनकी पत्नी की मृत्यु एक दिन पूर्व सायंकाल में ही हो चुकी थी।


पूरा गांव आश्चर्यचकित था कि घर पर बैठे बैठे कीनाराम को पत्नी की मृत्यु की जानकारी कैसे हो गयी? कुछ समय बाद घरवाले फिर से विवाह के लिए दबाव डालने लगे। जिससे परेशान होकर बाबा कीनाराम ने घर छोड़ दिया।


Baba Kinaram ji Sanyas Jiwan 

घर छोड़ने के बाद वे घूमते हुए गाजीपुर जिले के कारों ग्राम जोकि अब बलिया जिले में है, वहां पहुंचे। वहां रामानुजी परंपरा के संत शिवराम की बड़ी प्रसिद्धि थी। कीनाराम जी उनकी सेवा में जुट गए और उनसे दीक्षा देने की प्रार्थना की।


एक दिन शिवराम जी ने इन्हें पूजा सामग्री लेकर गंगातट पर चलने को कहा। कीनाराम जी सामग्री लेकर गंगातट से थोड़ी दूर बैठ गए। थोड़ी देर में गंगा का जल बढ़कर उनके पैरों तक पहुंच गया। यह चमत्कार देखकर शिवरामजी ने इनको दीक्षा दी दी।


Kinaram Baba Ne Beejaram Ji Ko Mukt Karaya

बाबा ने कुछ समय वहां रहकर के साधनाएं कीं। पत्नी की मृत्यु के बाद जब संत शिवराम ने पुनर्विवाह किया तो बाबा कीनाराम ने उन्हें छोड़ दिया। भ्रमण करते हुए बाबा नईडीह नामक गांव में पहुंचे। वहां एक बुढ़िया के लड़के को लगान न दे पाने के कारण जमींदार के आदमी पकड़ ले गए थे।


लाचार वृद्धा का दुख बाबा से देखा नहीं गया। वे उसके लड़के को छुड़ाने जमींदार के पास पहुंच गए। जमींदार ने कहा कि मेरा लगान दे दीजिए, लड़का ले जाइए। बाबा बोले, “जहां लड़का बैठा है, उसके नीचे खोदो। तुम्हें तुम्हारे लगान से कई गुना अधिक धन मिल जाएगा।


सचमुच वहां सोने की अशर्फियों का ढेर निकला। जमींदार बाबा के चरणों में नतमस्तक हो गया। लड़के को छोड़ दिया गया। बुढ़िया ने अपने लड़के को बाबा की सेवा में सौंप दिया। वही लड़का आगे चलकर बाबा बीजाराम के नाम से प्रसिद्ध हुआ और बाबा का उत्तराधिकारी बना।


भगवान दत्तात्रेय के दर्शन

baba kinaram ji kahani

वहां से आगे बढ़ते हुए बाबा गिरनार पर्वत पर पहुंचे। जो औघडपंथी संतों की पुण्य तपोभूमि मानी जाती है। यहीं साक्षात शिव के अवतार महागुरु दत्तात्रेय जी ने baba kinaram को दर्शन दिए। इससे पूर्व दत्तात्रेय जी ने गुरु गोरखनाथ को भी यहीं दर्शन दिए थे।


जूनागढ़ के नवाब का मानमर्दन- बाबा कीनाराम beejaram ji ki mukti

गिरनार पर्वत से लौटते हुए बाबा जूनागढ़ रियासत में पहुंचे। वहां का नवाब बहुत घमंडी था। उसने अपने राज्य में भिक्षा मांगने प्रतिबंधित कर रखा था। भिक्षुकों को वह जेल में डाल देता था। वहां पहुंचकर बाबा ने बीजाराम को भिक्षा मांगने भेजा।

baba kinaram ramgarh chandauli

लेकिन नवाब के आदेशानुसार सैनिकों ने उन्हें कालकोठरी में डाल दिया। बीजाराम के न लौटने पर बाबा कीनाराम स्वयं भिक्षा मांगने गए। उन्हें भी पकड़कर कालकोठरी में डाल दिया गया।


वहां पहले से ही बहुत से संत महात्मा और फकीर बंद थे। सबको चलाने के लिए एक चक्की दी जाती थी। बाबा को भी एक चक्की दी गयी। बाबा ने अपनी छड़ी चक्की पर मारी और चक्की अपने आप चलने लगी।

baba kinaram asharam


इसी तरह वहां लगी 981 चक्कियां बाबा ने एक साथ चला दीं। यह देखकर पहरेदारों ने नवाब को सूचना दी। यह देखकर नवाब ने बाबा को मुक्त कर उनसे क्षमा याचना की। बाबा ने उससे सभी संतों-फकीरों को छोड़ने को कहा।


साथ ही बाबा ने उससे वचन लिया कि आज के बाद प्रत्येक मांगने वाले को ढाई पाव आटा राज्य की ओर से दिया जाएगा।


क्रीं कुंड-अघोरी बाबा

जूनागढ़ से चलकर बाबा कीनाराम उत्तराखंड के जंगलों में पहुंचे। वहां विभिन्न स्थलों पर बाबा ने कई वर्षों तक साधनाएं कीं। तत्पश्चात वे वाराणसी के क्रीं कुंड में पहुंचे और यहां धूनी रमाई।

Baba kinaram ji

क्रीं कुंड को बहुत ही सिद्ध स्थल माना जाता है। एक बार बाबा कालूराम ने कहा था कि यहां सभी तीर्थों का वास है। क्रीं कुंड में ही बाबा कीनाराम ने अघोरपंथ की सर्वोच्च गद्दी स्थापित की। यहां बाबा की जलाई हुई धूनी आज भी प्रज्वलित है।


यहां स्थित कुंड में स्नान करने से सभी प्रकार के चर्म रोग दूर होते हैं, ऐसी मान्यता है। क्रींकुण्ड में स्नान करने और बाबा की समाधि के दर्शन करने के लिए लोगों का तांता लगा रहता है।


Kinaram Baba Ka Saral Swabhav

कीनाराम बाबा बहुत ही सरलस्वभाव के थे। दूसरों के दुख से वे बड़ी जल्दी द्रवित हो जाते थे। वे शीघ्र ही उसके दुखों को दूर करने के उपाय बता देते थे। शिव के समान आशुतोष और शिव के समान ही क्रोधी।


कीनाराम बाबा का कृतित्व

baba kinaram

Kashi Naresh Ko Shrap

यही औघड़ों का स्वभाव है। प्रसन्न हो जायें तो सब कुछ दे दें। नाराज हो जाएं तो जो है वह भी छीन लें। लेकिन बाबा ने काशीनरेश के अलावा और किसी का अहित नहीं किया। अपने जीवनकाल में उन्होंने न जाने कितने रोगियों को रोगमुक्त किया। कितनों की समस्याएं दूर कीं। कई मृत लोगों के परिजनों के रुदन से द्रवित होकर उन्हें पुनर्जीवित किया।

Je Ke Na de Ram O K de Kinaram

एक जनश्रुति है कि एक बार एक निःसंतान महिला भक्तशिरोमणि तुलसीदासजी के पास पुत्र की याचना हेतु पहुंची। तुलसीदासजी ने बताया कि तुम्हारे भाग्य में संतानसुख नहीं है। अतः तुम्हे संतान नहीं हो सकती।


वह महिला बाबा कीनाराम baba keenaram के पास पहुंची। बाबा ने अपनी छड़ी पांच बार उसके माथे से छुआई। जिसके फलस्वरूप उसके पांच पुत्र हुए। तभी से यह कहावत प्रचिलित हो गयी कि “जो न कर सकें राम। वह करें कीनाराम।”

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Aghori Ki Sadhana

अघोरपंथ वस्तुतः साधना की सबसे जटिल पद्धतियों में से एक है। साथ ही यह सबसे सरलतम भी है। इसमें साधक को केवल प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करना होता है। यह सरलतम इसलिए है कि इसमें साधक को जगत की प्रत्येक वस्तु को शिव रूप में स्वीकार करना होता है।


जटिलतम इसलिए कि प्रकृति से तादात्म्य एवं हर अच्छी बुरी चीज को शिव स्वरूप मानकर स्वीकार करना और अंगीकार करना बहुत ही कठिन है। संभवतः सभी पंथों में अघोरी ही है जो प्रकृति पर पूर्ण नियंत्रण रखता है।

baba kinaram asharam


इसीलिए अघोरी का कहा गया एक एक वाक्य अक्षरसः सत्य होता है। अघोरी के दिये गए शाप या आशीर्वाद को काटने का सामर्थ्य अघोरेश्वर भगवान शिव के अतिरिक्त अन्य किसी में नहीं।


पांचवी छठी शताब्दी के बाद सुप्तावस्था में चली गयी अघोर परंपरा को पुनर्जीवित और पुनर्स्थापित करने का श्रेय बाबा कीनाराम को जाता है। बाद के वर्षों में कुछ तथाकथित अघोरियों ने समाज में अपने कृत्यों से जनमानस में अघोर परम्परा एवं अघोरियों के लिए भय का वातावरण बनाया।


इस विषय पर विश्वनाथ प्रसाद अस्थाना जिन्होंने साठ साल तक अघोरपंथ को बारीकी से समझा और अघोरपंथ पर कई विश्वप्रसिद्ध पुस्तकें भी लिखीं। उनके विचार इस प्रकार हैं-

“अघोरी मदारियों की तरह तमाशा नहीं दिखाते। न ही वे चमत्कारों का दिखावा करते हैं। अघोरी तो संकल्पमात्र से विधि के विधान को बदल देता है। तथापि उनका एकमात्र उद्देश्य जनसामान्य की सेवा और दुखों को दूर करना होता है।”


वह पाखंड और चमत्कार से दूर रहता है। यह और बात है कि काल के प्रवाह में उसके द्वारा जनकल्याण के लिए सहज ही कुछ ऐसे कार्य हो जाते हैं जिन्हें आमजन चमत्कारों की संज्ञा देते हैं।”


बाबा कीनाराम की मृत्यु

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170 वर्षों तक जनकल्याण के लिए अनेक लीलाएं करने के बाद बाबा कीनाराम ने सन 1770 में समाधि ले ली।